स्वास्थ्य विभाग में अनियमितता व भ्रष्टाचार चरम पर, 200 एम्बुलेंस खा रही जंग

Nirmal Mahto
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रांची। प्रदेश में भय, भूख और भ्रष्टाचार जर्रे-जर्रे में व्याप्त है।झारखंड के स्वास्थ्य विभाग में ऊपर से नीचे तक अनियमितता भ्रष्टाचार की नैया बह रही है। हर वर्ष सरकार के द्वारा स्वास्थ्य विभाग को वार्षिक बजट के रूप में भारी भरकम बजट की राशि प्रदान की जाती है। दवा, संसाधन, उपकरण के साथ-साथ भवन निर्माण की राशि अलग से दी जाती है। इसके विपरीत राज्य के अस्पताल और स्वास्थ्य केन्द्र की बदहाली का नजारा कुछ और ही है। कोरोना ने राज्य मे एक बार पुन: दस्तक दे दी है। अस्पताल में दवा उपकरण की कमी बतायी जा रही है। मरीज दवा और चिकित्सा के अभाव में मर रहे हैं। लगभग 50 प्रतिशत मरीज तो संसाधन के अभाव में अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाते है।
    ग्रामीण और पठारी क्षेत्र का हाल यह है कि गंभीर मरीज और गर्भवती महिला को आज भी डोली, खटिया या बांस के बने स्ट्रेचर पर लादकर परिजन स्वास्थ्य केन्द्र तक लाने को विवश होते हैं। कई लोगों की मौत तो रास्ते में हो जाती है। फिर लोग अपने मरे हुए परिजन को कांधे पर या साइकिल में बांधकर वापस अपने घर अन्तिम संस्कार के लिए लौटते हैं। कोरोना के कारण जहां एक ओर लोग भयाक्रांत हो रहे हैं, वही विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की बांछें खिल रही हैं।

कमीशन न मिला तो सड़ा डालीं एम्बुलेंस, खरीदारी में भी धांधली

हर साल विभाग बजट राशि से एम्बुलेंस की खरीदारी भी  दिखाती है, पर अस्पताल मे एम्बुलेंस का अभाव ही बताया जाता है। राजधानी के नामकुम स्थित स्वास्थ्य विभाग के परिसर में पिछले एक साल से भी अधिक समय से लगभग 200 एम्बुलेंस जो स्थानीय स्तर पर खरीदी गई थी, विभाग के एक शीर्ष अधिकारी की लापरवाही, भ्रष्टाचार और अनियमितता के कारण ज॔ग खाकर  बनती जा रही है। विभाग ने कोरोना काल के संकट को ध्यान में रखकर इन्हें खरीदा था। इस एम्बुलेंस को राज्य के हर जिले में आवश्यकता के अनुसार पहुंचाने की योजना बनी थी। एम्बुलेंस की खरीदारी के बाद उस फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सूत्रों का कहना है कि एक-एक एम्बुलेंस पर अधिक खर्च भी आया। एम्बुलेंस में हर तरह के संसाधन उपलब्ध होने की बात उस समय बताई गई थी। इसके विपरीत खुले मैदान के नीचे जंग खाकर सड़ रहीं इन एम्बुलेंस से संसाधन के गायब होने की खबर मिल रही है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस खरीदी में विभाग के शीर्ष अधिकारी को कमीशन की राशि न मिलने के कारण उन्होंने इसे खुद के मान-सम्मान से जोड़कर उपेक्षित कर दिया।

सूत्रों का दावा है कि अस्पताल के निर्माण की राशि से लेकर दवा, संसाधन में जब उक्त अधिकारी को ‘पुष्प-पत्रम’ की भेंट प्राप्त नहीं होती, तब तक अनुमति नहीं मिलती है। कोरोनाकाल में दवा खरीदारी में भी काफी धांधली हुई। दवा एक ही आपूर्तिकर्ता से ली गयी थी। विभाग के सूत्र का कहना है कि आबादी से चार गुना दवा की खरीद की गई थी। दवा 40 प्रतिशत खरीदी गई और भुगतान शत-प्रतिशत दिखाया गया ।झारखंड के लगभग सभी अस्पतालों में दवा और संसाधन का अभाव बताया गया है।

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