चलकरी के विस्थापितों ने त्रिपक्षीय वार्ता में सोलर प्लांट पर उठाया जनहित का सवाल
बिजली नहीं तो प्लांट नहीं—विस्थापितों का दो टूक संदेश*

बेरमो (बोकारो) :चलकरी गांव में प्रस्तावित सोलर पैनल प्लांट को लेकर विस्थापितों की वर्षों पुरानी पीड़ा एक बार फिर प्रशासन और सीसीएल प्रबंधन के समक्ष मुखर होकर सामने आई। अनुमंडल पदाधिकारी बेरमो के निर्देश पर सीसीएल बीएंडके क्षेत्र के महाप्रबंधक संजय कुमार झा की उपस्थिति में करगली स्थित ऑफिसर्स क्लब में एक त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता अनुमंडल कार्यपालक दंडाधिकारी ने की, जिसमें विस्थापित प्रतिनिधि, सीसीएल प्रबंधन और सरकारी अधिकारियों के बीच सभी ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई।
बैठक के दौरान कार्यपालक दंडाधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा कि बिजली और पानी मानव जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं हैं, और किसी भी विकास परियोजना की सार्थकता इसी से तय होती है कि उससे प्रभावित लोगों को न्यूनतम मानवीय सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं। उन्होंने सीसीएल प्रबंधन को निर्देश दिया कि विस्थापित परिवारों को घरेलू उपयोग के लिए बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु सक्षम अधिकारियों से समन्वय कर शीघ्र समाधान निकाला जाए।
विस्थापित नेता काशीनाथ केवट ने वार्ता में कई गंभीर तथ्य सामने रखे। उन्होंने बताया कि सीसीएल के अभिलेखों में जिन लोगों को नौकरी देने का उल्लेख है, वास्तविकता में उन्हें आज तक रोजगार नहीं मिला। विस्थापितों के अनुसार डीआरएंडआरडी परियोजना के लिए 6464 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई, जबकि इसके बदले केवल 632 लोगों को ही नौकरी दी गई, जो न्याय और पुनर्वास के सिद्धांतों के विपरीत है।
सीसीएल प्रबंधन द्वारा कार्य प्रारंभ करने पर जोर दिए जाने पर विस्थापितों ने एक स्वर में कहा कि पिछले 45 वर्षों से उनकी भूमि पर हर प्रकार का प्रतिबंध लगा हुआ है—चाहे पीएम आवास हो, मछुआ आवास या अपनी ही जमीन की खरीद-बिक्री। विस्थापितों ने स्पष्ट कहा कि यदि सीसीएल के पास भूमि उपयोग की कोई ठोस योजना नहीं है, तो क्षतिपूर्ति के साथ डीनोटिफिकेशन की घोषणा की जाए। इस पर महाप्रबंधक ने जानकारी दी कि डीनोटिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, हालांकि इसमें समय लगेगा।
सबसे निर्णायक स्वर बिजली आपूर्ति को लेकर रहा। विस्थापितों ने साफ शब्दों में कहा कि यदि उनकी जमीन पर सोलर पैनल प्लांट लगाया जाएगा, तो गांव को बिजली देना अनिवार्य होगा। उन्होंने सवाल उठाया कि जब आसपास के कई गांवों को सीसीएल द्वारा बिजली दी जा रही है, तो चलकरी के साथ भेदभाव क्यों? विस्थापितों ने दो टूक कहा—“बिजली नहीं, तो प्लांट भी नहीं।”
बैठक के अंत में कार्यपालक दंडाधिकारी ने दोनों पक्षों को संतुलित और व्यावहारिक समाधान की दिशा में आगे बढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सीसीएल को विस्थापितों को बिजली सुविधा देने का ठोस रास्ता निकालना चाहिए, वहीं विस्थापित प्रतिनिधि भी अपनी मांगें लिखित रूप में शीघ्र प्रस्तुत करें, ताकि किसी सम्मानजनक समाधान तक पहुंचा जा सके।
यह त्रिपक्षीय वार्ता केवल सोलर प्लांट तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने एक बड़ा सवाल खड़ा किया—**क्या विकास का अर्थ विस्थापितों को अंधेरे में धकेल देना है, या उन्हें रोशनी के साथ आगे बढ़ने का हक देना भी विकास का हिस्सा है? चलकरी के विस्थापितों ने स्पष्ट कर दिया है कि विकास वही स्वीकार्य होगा, जो इंसाफ और बुनियादी सुविधाओं के साथ आए।
इस वार्ता में सीसीएल की ओर से महाप्रबंधक संजय कुमार झा, पीओ डी. मांझी, रेवेन्यू ऑफिसर जयशंकर प्रसाद सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। वहीं विस्थापितों की ओर से वरिष्ठ नेता काशीनाथ केवट, भुनेश्वर केवट, जिला परिषद सदस्य अशोक मुर्मू, चलकरी मुखिया अखिलेश्वर ठाकुर, दक्षिणी चलकरी मुखिया पति दुर्गा सोरेन समेत अशोक मंडल, मुन्ना गिरी, निमाई मंडल, मानिक मंडल, शिरोमणि मंडल, होपन मांझी, जमाले बारिश, चुनीलाल केवट, राज केवट, मनीरुद्दीन अंसारी, वाजिद सहित अनेक प्रतिनिधि प्रमुख रूप से मौजूद थे।




